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आम आदमी?बनाम कुत्ता

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आम आदमी?बनाम कुत्ता

  • August 06, 2022
    आम आदमी?बनाम कुत्ता
  • आम आदमी या इंसान का वर्णन इतनी गहराई तक न तो आप ने सोचा होगा ना कल्पना किया होगा।
    हर कोई अपने आप को आम आदमी कह कर संबोधन हमेशा करता है चाहे वो कोई मंत्री हों या मुख्यमंत्री, या प्रधमंत्री या डॉक्टर या इंजीनियर या शिक्षक कही न कही सभी अपने आप को आम आदमी जरूर संबोधित करते ही हैं।
    लेकिन मैं भारत की एवं भारत जैसे विकासशील देशों की बात कर रहा हूँ अब ध्यान दिजिये।
    आम आदमी की परिभाषा -जिसका कोई प्रभाव न हो एवं कुछ सिमित स्थान पर प्रभाव कोशिश करने पर दिख सके ।
    वरिष्ठ नागरिक भी आम आदमी है जिनका उम्र 60 वर्ष से अधिक हो केवल उम्र से वरिष्ठ हैं।
    नेता,सेलेब्रिटीज़,कुछ उधोगपति, राष्ट्रपति ये वरिष्ठ नागरिक नही है ये विशेष आदमी है। जो कहीं भी न तो नाम के मोहताज है और इनका प्रभाव हर जगह होता है ये कहीं भी अपना प्रभाव,वर्चस्व दिखा सकते हैं।
    आम आदमी का प्रभाव किसी कुत्ते के तुलना कर सकते है क्यों कि कुत्ता नाम प्रयोग करने से बात आपके आत्मा तक पहुंचेगी।
    हर आम आदमी का प्रभाव कुछ स्थान विशेष तक होता है जैसे गली के कुत्तों का गली तक बाहर ये कुत्ते बन जाते हैं वैसे ही एक गरीब का प्रभाव केवल उसके मन तक है उसकी झोपड़ी कभी भी कोई उखाड़ सकता है एक ठेले वाले का एक रेडी वाले का ,झुग्गी वाले का,एक मजदूर का प्रभाव सिर्फ उसके शरीर के बल तक है बल यदि ना रहे तो ये मृत समान हैं।
    आम आदमी जीवन भर अपना प्रभाव दिखाने की कोशिश करता रहता है जैसे एक प्रिंसीपल ,एक चपरासी, एक सिपाही, एक दरोगा,एक जिलाधिकारी एक कमिश्नर एक डॉक्टर, एक इंजीनियर, आदि वी सभी जो किसी भी पद पर हो एक प्रिंसिपल का दायरा उसका स्कूल है वहाँ वो अपना प्रभाव दिखा सकता है एक सिपाही अपने एरिया में दरोगा पूरे थाने तक जिलाधिकारी, कमिश्नर जिले में अपने कार्य काल तक आप आदमी के अलग अलग पद पर होते है और निचले स्तर के आम आदमियों पर अपना प्रभाव दिखाते है कार्यालय के बाद इनका प्रभाव इनके दौलत के हिसाब से होता है फिर इनका इलाके का दायरा कम होजाता है।
    कुत्तों की तरह देशी कुत्ते के जीवन का मोल किसी विदेशी कुत्ते से हमेशा कम होता है उसी प्रकार किसी बड़े पद पर तैनात व्यक्ति जब सेवा से मुक्त होता है तो उसकी विरदरी देशी कुत्ते की भांति हो जाती है।
    पर्याय ये है कि इलाके में वर्चस्व दिखाने वाले व्यक्ति भी देशी और विदेशी कुत्ते की भांति है देशी की कोई कद्र नही और विदेशी की सेवा इंसान तो हमेशा करता है।
    आम आदमी सिर्फ पद और वर्चस्व की लड़ाई में लड़ता रहता है अपना जीवन और अपने परिवार के लिए ये किसी की जान लेने में बिल्कुल हिचक नही करता इसी लिए ये आम आदमी है ये अपना प्रभाव हर जगह दिखाने की कोशिश करता है जबकि विशेष आदमी कभी अपना प्रभाव दिखाने की कोशिश नही करता क्यों कि वो वो हमेशा हरजगह प्रभावी होता है जैसे मंत्री आदि लेकिन पद जाने पर ये सेवानिवृत्त विशेष आदमी के दर्जे में ही होते है बस प्रभाव ही कम होता हूं जैसे हारे हुए नेता ऎसे विदेशी कुत्ते है जिनको यदि घर से निकल दिया जाय तो कोई पागल इन्हें दुबारा पाल लेगा क्यों कि ये विशेष हैं।
    लेकिन आम आदमी जीवन के हर मोड़ पर देशी गली का कुत्ता ही रहता है ।
    आम आदमी के मरने,जीने का प्रभाव न के बराबर होता है
    आम आदमी को यदि कोई समस्या ही जाए पैसे की स्वास्थ्य की कोई मार दे कोई घर उजाड़ दे तो अपने प्रभाव के हिसाब से चिल्ला सकता है मारपीट कर सकता है न्याय का फरयाद कर सकता है बस लेकिन किसी विशेष आदमी के साथ यदिकोई दिक्कत हो तो एक इशारे पर कयामत ढा देंगे फिर कोई मरे या जिये कोई फर्क नही पड़ता।
    अक्सर चुनाव में मैंने देखा हैकि हर नेता अपने आप कोआम आदमी संबोधित करता है सिर्फ वोट के लिए बेवकूफ बनाते गई सब कभी सोचा है की वो आम कैसे करोड़ो की संपत्ति, बच्चे महंगे स्कूल, विदेशों में पढ़ते है vvip व्यवस्था हर जगह जिस अस्पताल में आप के साथ कुत्ते जैसा व्यवहार होता है वहीं इनका दामाद जैसे तो ये आम आदमी कहाँ ।
    कोई मुख्यमंत्री, कोई मंत्रीय प्रधानमंत्री, या राष्ट्रपति या मुख्यन्यायधीश अक्सर हैलीकॉप्टर से यात्रा करते हैं जहाँ भी जाते हैं वहाँ रेडी,ठेले,छोटे सब्जी वाले, दिहाड़ी करने वालो की कुत्ते के तरह भगा दिया जाता है कितनो के घर उस वक्त का खाना भी नसीब नही होता क्यों क्यों कि वो आम आदमी हैं रोड ख़राब किसी नेता को नही दिखती हैलीकॉप्टर से लेकिन कोई उद्घाटन होता है तब इनलोगों ले लिए वो रोड बनादी जाती है जहाँ पे इन विशेष लोगो के आने की संभावनाएं होती है क्यू?क्यों कि ये विशेष आदमी है।
    कभी AIIMS PGI, किसी भी बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज में जाईये अपने मरीज को दिखने और फिर देखिए आम आदमी कुत्ता और विशेष आदमी विदेशी नस्ल के कुत्ता ये तो सभी जानते होंगे।
    देशी कुत्ता और आम आदमी एक जैसा है इनके मरने से कोई फर्क नही पड़ता किसी को क्यों कि देश कुत्ता तो कुछ भी सड़ा गला, नाली का पड़ा खा लेता है और कुछ ना मिले तो नाली का सड़ा गला भी कहा लेता है जैसे आम आदमी हर जगह समझौता वाला जीवन।
    लेकिन विशेष आदमी विदेशी नस्ल के कुत्ते के समान है इसके मरने से कई लोगो को फर्क पड़ता है जैसे विदेशी कुत्ता दूध पीता है तो दूध वाले को मांस खाता है तो मांस वाले को इंजेक्शन लगता है हमेशा हर समय स्वास्थ्य के देख रेख करने वाले डॉक्टर को कपड़ा पहनता है तो कपड़े वाले को बिस्कुट खाता है तो बिस्कुट वाले को सबका नुकसान होता है इसी प्रकार मंत्री सेलेब्रिटीज़ है जिनका जीवन के पैरासाइट को जीवन देता है ताकि वो आम लोगों का खून पी सकें जो ईमानदार होगा उसको अपना अंडरवियर खरीदने के लिए कई बार सोचना पड़ता है ईमानदारों के पास पैसा कितना है ये सबको पता है वो तो आम आदमी है ना।
    पदों का दायरा होता है किसी का स्कूल तक किसी का थाने तक किसी का जिले तक इसके बाहर सब देशी कुत्ते की भांति होते है जो भौक सकते है पर प्रभावहीन होते है कुछ ही होते है जो विशेष आदमी होते है विदेशी कुत्ते की तरह जिनका प्रभाव हर जगह होता है इनके विरोध पर सजा का प्रावधान है क्यों कि ये विशेष आदमी है और विशेष लोगों ने ही न्याय प्रथा को अपने हाथों में ले रखा है।
    मंत्री जी जो कई अपराधों से युक्त हो वो कभी भी दूसरी सत्ता धारी पार्टी में जा सकते है और उनका अपराध धूल जाता है क्यों कि वो विशेष आदमी हैं।
    विशेष आदमी कभी दुकान पर राशन नही खरीदता,
    कभी मोल तोल नही करता,कभी लाइन नही लगाता, कभी अपने कर्मो पर नही रोता जैसे नेता जी लोग,पूंजीपति लोग सेलेब्रिटीज़ लोग ये अव्वल दर्जे के कुत्ते के समान है जो इन्हें पालता है वही इनके जरूरतों को पूरा करता है ठीक उसी तरह जैसे नेता को या पूंजीपति को या सेलेब्रिटीज़ को जनता ही मुकाम पर पहुँचाती है और ये जनता को लूट कर अपना पेट भरते हैं।
    विडंबना ये है कि आप के अधिकार आप इस्तेमाल करना ही नही चाहते सिस्टम नेताओ और पूंजीपतियों से चलता है, आप के पास कई विकल्प हैं लेकिन आप विदेशी नस्ल को देख डर जाते है या ये कहिए कि उनका सामना नही करना चाहते गली के कुत्तों के तरह पीछे पूछ खोंस कर भोंकते रहते हैं।
    कोई बोलता है कि आप का गर्दन किसी आरी से काट कर आप को मारेंगे,
    कोई बोलता हैंकि आप को चाकू घोप कर मारेंगे,
    कोई बोलता है कि आप को डंडे से पिट कर मारेंगे,
    कोई बोलता है कि आप कोगोली से मारेंगे,
    कोई बोलता है की आप को तोप से उड़ा देंगे ,
    कोई बोलता हैं कि भूखे रख कर मार देंगे,
    कोई बोलता है कि मेरी ग़ुलामी करो तो रूखा सुख खा कर जी सकते हों तो हमारे यहाँ लोग अँतिम विकल्प ही चुनते है कभी विरोध में नही खड़े होते अगर ऐसा नही होता तो न तो मुसलमान भारत पर आक्रमण करते और ना अंग्रेज देश को गुलाम बनाते और ना तो आज ये नेता और उधोगपति आज हावी होते ।
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सेनेट्री पैड

Sanitary Pad/Female freedom?

सेनेट्री पैड लगभग 10 रुपये की लागत का सबसे बेहतर क्वालिटी में बनता है वो कितने में बिकता है आप जानते है ,कीमत बढ़ा कर कफन और दूल्हा सिर्फ भारत में बिकता है जहाँ महिलाओं के आदर की बात की जाती है वहाँ इसपर टैक्स भी सभी के लिए बराबर चाहें 25 रुपये का मिले या 250 का कोई फर्क नाहींपडता 22 करोड़ महिलाये ऐसी है जो किसी का दिया हुआ कपड़ा पहनती है सैनेट्री पैड की कल्पना छोड़ दिजिये और ऐसा हर दूसरी महिला है जो इस बात को मानती है और वो भी इसका हिस्सा कभी न कभी हैं फिर भी 25 करोड़ महिलाएं सैनेट्री पैड पे लिखे मूल्य दे कर चुपके से दुकानदार के यहाँ से चली जाती हैं या चुपके से ऑनलाइन या किसी से मंगा लेतीं हैं और चुप रहतीं हैं सिर्फ इसलिये की वो हमारे देश के उस समाज का हिस्सा हैं जहाँ महिलाओं को माँ जैसे आदरणीय पद दिया गया हो ।
एक बार इस्तेमाल किये हुए साफ कपड़े को दुबारा इस्तेमाल नही कर सकते ये सभी जानते हैं लेकिन एक गरीब महिला जो गरीबी रेखा से नीचे है वो बार बार एक ही कपड़े लेने को मजबूर होती है क्यों कि तन ढकने के लिए कपड़े भी मुश्किल से तन ढकने को मिलते हैं .
बस यहीं से कहानी शुरू होती हैं इस दुनियाँ में स्त्री के शोषण की हर बिंदु पे ध्यान दिजियेगा और जिम्मेदार कौन है ये देखिये?
किसी जमाने मे सदियों पहले साफ सूती धोती का इस्तेमाल करती थी महिलाएं या साफ कपडे का, देश गरीब नही था बस जनसंख्या कम थी और सम्बंधों में मधुरता राज तंत्र था हाथ से बुने कपड़े लगभग हर घर में बनाएं जाते थे रुपए का मूल्य कोई जानता ही नही था और ना ही रुपया समाज से बड़ा था जैसे कि आप जानते है “सोने की चिड़िया” ये वही देश है।
धीरे -धीरे जनसँख्या बढ़ी जातियों का बंटवारा हुआ कि धर्म बने जो देश अधिक विकास किया वो विकसित और जो धीरे से वो विकासशील इंसान (मानव)की फितरत ये होती है कि जो चीज या जो लोग समाज को प्रभावित करें उसकी परिकल्पना और उससे बेहतर या उसके जैसा वस्तु उसे चाहिये या उसके जैसे उसे बनना है अर्थात आप की अंतरात्मा आप का समुदाय, आप की प्रकृति कैसी है आप की क्षमता कैसी है आप ये नही देखते किसी दूसरे के प्रभाव का असर ऐसा होता है कि आप अपने आप को अपने प्रकृति के विपरीत ढालना सुरु कर देते है जैसे आज अधिकांश ऐसी भी महिलाएं है जिन्हें सिन्दूर लगाना बतलब पुराने जमाने वाली सोच लगती है और नही लगाना आधुनिकता, माथे पर कुमकुम लगाना टाइम खराब करना गजरा लगाने से एलर्जी होना ।
मेरा मुख्य बिन्दु सेनेट्री पैड है बस एक एक कड़ी को सोच में रखते रहिए ।
प्रधमंत्री जन औषधि केंद्र पर 5 रुपये का सेनेट्री पैड देश के 6500 केंद्रों पर उपलब्ध कराया जा रहा है अच्छा कोशिश लेकिन 6500 केंद्र या करोड़ो महिलाएं को पूर्ति क्या सम्भव है उत्तर नही इस योजना को अगर बाजार में सरकारी मूल्यों पर उतार दिया जाता तो बाकि गैंगेस्टर वाली कंपनियों को आपत्ति होता क्यों कि उनके पैड का टैक्स ही सरकारी पैड के मूल्यों से कही अधिक है इसलिए हमारे देश मे महिलाओं को सम्मान कितना मिलता है आप समझ सकते है रही पुरूष मानसिकता की बात तो हर मंत्रालय में हर विभाग में पुरूष बाहुल्य है फिर भी न तो किसी अस्पताल ने महिलाओं के लिए आवाज उठाई और न ही किसी महिला व्यापारी चिकित्सक ने ऐसा क्यों? क्यों कि ये ऐसा देश है जहाँ किसी को मौका मिले तो वो कफन क्या इंसान के मास को भी खा सकता है।
जरा ध्यान दें- बात गंदे कपड़े से उठी लेकिन ये नही बताया गया कि सभी साफ कपड़े खराब कैसे हो गए.
सिर्फ इतना अन्तर है पैड और साफ सही सूती कपड़े में कि आधुनिक समय मे भाग -दौड़ ,खेल कूद, लंबे समय तह जॉब करना ,सफर करना आसान नही है कपड़ो में पैड की तुलना में बाकि सिर्फ पैसों का व्यापार है दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में एक बार मैंने देखा कि जहाँ महिलाओं की डिलीवरी होती है वही एक छोटा सा काउंटर बना हुआ था जहाँ एक दर्जी सिलाई मशीन से कपडे लेकर पैड बना रहा था और महिलाओं को दिया जा रहा था डिलीवरी के बाद इस्तेमाल के लिए जब तक वो अस्पताल में है, सफाई जा अंदाजा तो पता ही होगा आपको और वही नही उत्तरप्रदेश कई कई राज्यो के बड़े बड़े अस्पताल डिलीवरी के समय महिलाओं से घर का पुराना धोती, चादर,या सूती साड़ी हमेशा माँगते है क्यों ? यदि ये गलत है तो अस्पताल इसे क्यों उपयोग करवाता है ।
बात सेनेट्री पैड के मूल्यों पर टैक्स पर है फायदे पर है और नुकसान पर है ।
कोई वैज्ञानिक क्यों नही पैदा हुआ जो इन सूती कपड़ो का आधुनिकीकरण करे?
जिस परफ्यूम का फ्लेवर का इस्तेमाल होता है सभी ब्रांडेड पैड में वो महिलाओं को समय से पहले कमसे कम 15 साल पहले अवसाद पैदा करता है ये क्यों नहीं बताया किसी महिला डॉक्टर ने?
खून को सोखने के लिए जिस फोम का उपयोग 1 रुपये के पैड में होता है वही 300 रुपये के पैड में होता है खून को जमाने के लिए जिस केमिकल का उपयोग होता है सभी पैड में वो 60% से अधिक महिलाओं को लड़कियों को गर्भाशय कैंसर,अंडाशय कैन्सर, जननांगों का कैंसर पनपते में कमाल की भूमिका निभाता है पर किसी ने नही बताया।
यदि बात की जाए कैंसर भारत में क्यों विदेशों में क्यों नही इसके लिए आप को समझना होगा,
भारत एक कुपोषण प्रधान देश है यहाँ के अमीर लोग भी 5 रुपये खर्च करने में 100 बार सोचते है बाकि गरीब और मध्यमवर्गीय तो अपने आप मे परेशान है कि खाए क्या बचाए क्या, कुपोषण ,पोषण रहित भोजन से बीमारी से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधी क्षमता भारत मे विकसित देशों से काफी कम है जबकि विकसित देशों में शराब एवं प्रीजर्ब भोजन का प्रचलन भारत से अधिक है फिर भी फल, सब्जियों,सलाद की मात्रा में भारत से कही आगे है विकसित देश.
शराब,सिगरेट, तम्बाकू के तरह ही सेनेट्री पैड ,कंडोम, गर्भ निरोधक गोलियाँ, नसबंदी एक ऐसा प्रोग्राम है जिससे सिर्फ सभी अनपढ़ सरकारों को सिर्फ कमाई करना है आप के मरने से कोई फर्क नही पड़ता आप कोई भी हों.
मैं उपयोग का विरोधी नही उपयोग करें लेकिन आप की पुरानी सभ्यता ही अंत मे सहारा देगी और देती रहेगी आप को ये ही शाश्वत है समय के हिसाब से उपयोग बेहतर है लेकिन अति करना विनाश।

Written by Dr BK.Upadhyaya

Director,Bharatmulticare(Ayurveda Health Reasearch Institute)

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गर्भ निरोधक गोली

गर्भ निरोधक गोली या नसबन्दी खतरनाक क्यों?

गर्भ निरोधक गोली या नसबन्दी खतरनाक क्यों? नसबन्दी -कई दशक पहले एक योजना भारत सरकार ने बनाई । बढ़ती जनसंख्या ,बेरोजगारी, अशिक्षा को देखते हुए एक योजना बनाई गई नसबन्दी एवं इस योजना को सफल बनाने के लिए मैनेजमेंट पालिसी के तरह नसबन्दी करवाने वाले लोंगो की कुछ रुपये 200 रुपये मिलते थे सन1975 में जब पहली बार जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाया गया जबरन नसबन्दी घर घर किया जाने लगा जैसे मानो भारत मे जनसंख्या विस्फोट होने वाला हो इस नसबन्दी कानून को लागू करवाने में उस समय के वर्तमान सरकार के साथ साथ संजय गांधी का विशेष हाथ था अब प्रश्न क्या बनता है इसपे ध्यान दिजिये। 1- अधिक बच्चे पैदा जो हो रहे थे उसके कारण को एक बेवकूफ भी बता सकता था जैसे शिक्षा का अभाव,जागरूकता का अभाव, गर्भ निरोधक संसाधनों का अभाव इसे किसी ने ध्यान क्यों नही दिया? 2- अगर गरीबी और अशिक्षा कारण इस देश में पनोती है सब बीमारियों का जड़ सिर्फ यही है इसपे सरकार ने ध्यान नही दिया जैसे मानो कोई सडयंत्र हो एक तरफ समस्त हिंदुओं में आक्रोश था वही जबरन घर घर से लोगो को 19 साल से 70 साल तक के लोगों का नसबन्दी किया गया लगभग 60 लाख लोगों का नसबन्दी किया गया सरकारी आंकड़ों के अनुसार और 2000 लोग मर गये लापरवाही से और किसी भी मरने वाले को कोई भी स्वास्थ्य सहायता या आर्थिक रूप से कोई सहायता नही दिया गया अपना ईलाज करवाने के लिए और न ही उनके आश्रितों को कोई सहायता मिला । मुसलमान नसबन्दी हो हराम मानते थे इसलिये इनके समुदाय में भी जमकर विरोध हुआ हकीकत क्या है नही पता लेकिन ऐसा लगता हैं कि यदि नसबन्दी उस समय अगर रफ्तार पकड़ लेती तो ऐसा अनुमान है कि भारत मे मुसलमान 100 करोड़ से ऊपर होते आज और हिन्दू 20 करोड़ पर सही क्या है नही पता लेकिन संजय गांधी पे या इन्दिरा गांधी पे आज के समय में लोगों को कितना विश्वास है वो तो सभी जानते हैं? 3- बात करे आज की तो आज का मेडिकल साइंस 1975 से काफी आगे है लेकिन ऐसा मैंने देखा है कि कुछ लापरवाही लगातार स्वास्थ्य मंत्रालय एवं भारत सरकार के द्वारा लगातार होता चला आ रहा है और वो है अशिक्षा , गरीबी एवं जागरूकता का अभाव कैसे ?  ध्यान दिजिये। 4- वर्तमान समय में नसबन्दी काफी कम लोग ही करते है और सरकार 2200-/ रुपये तक देती है नसबन्दी करवाने वाले लोगों को लेकिन कुछ शिक्षा बढ़ी जागरूकता बढ़ी लोगों को इसका नुकसान पता चलने लगा लेकिन फिर लापरवाही दुबारा सरकार की जैसे जनसंख्या रोकने के लिए कुछ गर्भनिरोधक गोलियां , कंडोम, कुछ हॉर्मोन के इंजेक्शन, कॉपर टी बाजार में उपलब्ध होगए अब लोग इस दौड़ में खुद शामिल होते चले गए बस एक गलती कर बैठे की ये नही देखे की हमारे देश के हर मंत्रालय की भाग दौड़ जाहिल अनपढ़ नेताओं के हाथ में है तो ये भला बाजार में व्यापारी कंपनियों के बारे में उतना ही जानते है जितना पैसा ये कंपनियां इनको देती है तब जा कर ये सामान उपलब्ध होते हैं बाजार में कई गुना कीमत पर और हम बोलते हैं कि हम विकास कर रहे हैं कैसे ? 5- माल डी ये नाम शायद कोई भी नही पूरे देश मे जो न सुना हो अबतक मैन देखा गर्भ निरोधक गोलियों में माला दी काफी प्रचलित है क्यों? क्यों कि गरीबी है अब इतना तो पता है कि अधिक बच्चे नही पैदा करना है और बेरोजगारी में माला दी भी यदि मिलजाए तो बुरा हिक्या । माला ड़ी खाने के बाद भी कम से कम लाखों महिलाए माँ बन गई हॉर्मोन इस तरह से बिगड़े की 20 साल की नवविवाहित मानो 45 साल की औरत दिखे। PCOD, गर्भाशय की गांठ ,थाइरोइड और बांझपन सिर चढ़ कर बोलने लगा (मैं इसीलिए बोलता हूँ कि जाहिलो का काफिला है हमारे देश मे भेड़ के तरीके से चल दिये ) के साल लग गए लोगों को ये जानने में कई इन गर्भ निरोधक दवाओं का दुष्प्रभाव कैसा होता है लेकिन कितनी औरतें अपना गर्भ कक निकलवाने के लिए मजबूर होगयीं कितने में अंडाशय निकाल दिए गए कितने कर्ज लेकर अपना ईलाज कहाँ -कहाँ से कराए कैसे कराए नहीं पता , लेकिन आज वर्तमान समय मे सिर्फ गर्भ निरोधक दवाओं का मूल्य अधिक है बस दुष्प्रभाव काफी देर से मिलता है माला ड़ी के तरह बस मूल्य अधिक है य सरकार को भी पता है लेकिन जहाँ 500 रुपये देश मे प्रधानमंत्री जनधन योजना में प्रति माह लोगों को दिया जा रहा हो महीने भर के राशन के लिए वहाँ 100 रुपये या 300 रुपये या 500 रुपये के गर्भनिरोधक गोलियां सिर्फ अमीरों के लिए हैं 30 करोड़ गरीबो के लिए नही। 6- copra- t इसका हाल ये है कि समझ मे ही नही आता कि यहाँ लोग गवाँर हैं कि सरकार अबतक सबसे अधिक कैंसर, गर्भाशय का यदि किसी कारण हुआ है तो 50% जिम्मेदार केवल कॉपर टी है ये कितना अच्छा है तब पता चलता है जब इसे निकलवाया जाए, ये अबतक का सबसे वाहियात सुविधा है कैसे ये निकलवाने वाली महिलाएं ही बता पायेंगी यहाँ के डॉक्टर नही ? 7 कंडोम – आप के अज्ञानता का फ़ायदा यदि पृथ्वी पर कहीं कोई उठा सकता है तो वो है भारत और यहाँ के कुछ आदमखोर लोग जितने भी कंडोम सस्ते वाले हैं वो एक तो जल्दी फटते हैं दूसरा इनके लगातार उपयोग से महिलाओं में योनि एवं गर्भाशय का कैंसर 60 गुना अधिक होता है 30 प्रतिशत महिलाएं बाँझ बन जाती हैं वही दूसरी ओर महिलाएं एवं पुरूष अपने प्राकृतिक समय से कम से कम 15 वर्ष पहले अवसाद से ग्रस्त होजाते हैं हालांकि कुछ महँगी कंपनियाँ भी इसमें है लेकिन भला हो अमेरिका वालो का जिसने जनसंख्या नियंत्रण में कंडोम के क्षेत्र मे अभूतपूर्व रिसर्च किया लेकिन हमारे यहाँ विकास जा नसबन्दी होगया अभी तह कोई विकास ही नही पैदा हुआ जो इस क्षेत्र में कुछ विकास करे। फिर भी जिस देश मे 500 रुपये में लोगों का ख़र्च महीने भर चलता है उनके लिए नसबन्दी (बधिया) मजबूरी के अलावा कुछ नही 30- 40 रुपये के लागत से बना कंडोम 200-400 रुपये में लोग ही बेचते हैं लोग ही बनाते है और लोग ही इनका दुष्परिणाम भोगते हैं सिर्फ अशिक्षा सिर्फ अशिक्षा।  आखिर शिक्षा, सही ज्ञान कोई क्यों दे ये तो आधुनिक देश जो है यहाँ तो महिलाओं का आदर सिर्फ TV पर और किताबों में होता और उनका शोषण हर दिन किसी न किसी रूप में सबसे भयावह रूप एक ये भी है। कृपया जागरूक बने कम से कम अपने परिवार के लिए और महिलाओं के शोषण को रोकने में अपना योगदान दे क्यों कि महिलाएं बर्दाश करती हैं शर्म संकोच अभी देश मे इस कदर है कि कोई महिला इन बातों को लेकर समाज से या सिस्टम से नही लड़ सकती।

written by Dr bk Upadhyaya

Director BHARAT MULTI CARE Group( Ayurveda Research Institute )

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मधुमेह

मधुमेह एक लापरवाही जीवन पर भारी

मधुमेह से किड़नी खराब होती है ? या इसके कारण आप खुद है?
1-मधुमेह रोगी किसी भी सूरत में जल्द कंट्रोल करना चाहता है।
2- Metformin नाम की दवा का प्रयोग प्रायः सभी मधुमेह रोगी करते हैं, जिसके कारण 40% रोगीयों में ह्रदय की समस्या ,और लगभग 60 प्रतिशत में हृदय औऱ किडनी की समस्या पनपती है ।
3- लगभग सभी को आँखों की रोशनी संबंधित समस्या होती है।
4- एक कमजोर व्यक्ति चाहे वो किसी भी कार्य से सम्बंधित क्यों न हों जबरन उससे यदि कोई कार्य कराया जाय तो वो न तो सामान्य तरीके से कार्य करेगा , व्यवहार भी सामान्य नही होगा और जल्दी ही हिम्मत हार जायेगा लेकिन इसके कमजोर कार्य क्षेत्र को समझ कर उसका सामना करने के लिए यदि उसको माहौल दिया जाए तो अवश्य ही वो समस्याओं का सामना कर सकता है।
5-Metformin या अन्य केमिकल यही काम करते हैं जबरन आप के अग्नाशय से इन्सुलिन बनवाने का काम करते है न कि पोषण का इसी लिए लगभग अधिकांश रोगीयों की दवा समय के साथ बढ़ती चली जाती है और एक समय ऐसा आता है जब आप जबरन भी दवाओं से इंसुलिन नही बनवा सकते फिर इंसुलिन के इंजेक्शन पर जीना पड़ता है जीवन भर ।
6-लोगों को पता है फिर भी लोग गलती पे गलती करते चले जाते हैं सिर्फ तुरंत आराम और कुछ भी खाने के लिए, परहेज इनको सजा लगती है लेकिन ये भूल चुके होते हैं कि ये परहेज और आहार-विहार कोई नया तरीका नही बल्कि आप के जीवन का उतना ही अहम हिस्सा है जितना कि आप की श्वास

जीना हैं तो आप को प्रकृति और वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार रहना ही पड़ेगा अन्यथा आप की पसंद एक तिनके से भी कम है इसे ढहना ही पड़ेगा।
कृपया रोग की जानकारी रखें एवं अपने स्वास्थ्य की रक्षा करें।

1- Disease Analysis & Information
2-Information and uses of classical medicine with Astrological effects
3-Diet Plan According disease & Dosha.
4- Successful research Classes for Cardiac , Nephro ,Gyne ,& Nervous
5- Anupan &Arist .
6- Patient care (only for patients)
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( Author) BMC Group)