सेनेट्री पैड लगभग 10 रुपये की लागत का सबसे बेहतर क्वालिटी में बनता है वो कितने में बिकता है आप जानते है ,कीमत बढ़ा कर कफन और दूल्हा सिर्फ भारत में बिकता है जहाँ महिलाओं के आदर की बात की जाती है वहाँ इसपर टैक्स भी सभी के लिए बराबर चाहें 25 रुपये का मिले या 250 का कोई फर्क नाहींपडता 22 करोड़ महिलाये ऐसी है जो किसी का दिया हुआ कपड़ा पहनती है सैनेट्री पैड की कल्पना छोड़ दिजिये और ऐसा हर दूसरी महिला है जो इस बात को मानती है और वो भी इसका हिस्सा कभी न कभी हैं फिर भी 25 करोड़ महिलाएं सैनेट्री पैड पे लिखे मूल्य दे कर चुपके से दुकानदार के यहाँ से चली जाती हैं या चुपके से ऑनलाइन या किसी से मंगा लेतीं हैं और चुप रहतीं हैं सिर्फ इसलिये की वो हमारे देश के उस समाज का हिस्सा हैं जहाँ महिलाओं को माँ जैसे आदरणीय पद दिया गया हो ।
एक बार इस्तेमाल किये हुए साफ कपड़े को दुबारा इस्तेमाल नही कर सकते ये सभी जानते हैं लेकिन एक गरीब महिला जो गरीबी रेखा से नीचे है वो बार बार एक ही कपड़े लेने को मजबूर होती है क्यों कि तन ढकने के लिए कपड़े भी मुश्किल से तन ढकने को मिलते हैं .
बस यहीं से कहानी शुरू होती हैं इस दुनियाँ में स्त्री के शोषण की हर बिंदु पे ध्यान दिजियेगा और जिम्मेदार कौन है ये देखिये?
किसी जमाने मे सदियों पहले साफ सूती धोती का इस्तेमाल करती थी महिलाएं या साफ कपडे का, देश गरीब नही था बस जनसंख्या कम थी और सम्बंधों में मधुरता राज तंत्र था हाथ से बुने कपड़े लगभग हर घर में बनाएं जाते थे रुपए का मूल्य कोई जानता ही नही था और ना ही रुपया समाज से बड़ा था जैसे कि आप जानते है “सोने की चिड़िया” ये वही देश है।
धीरे -धीरे जनसँख्या बढ़ी जातियों का बंटवारा हुआ कि धर्म बने जो देश अधिक विकास किया वो विकसित और जो धीरे से वो विकासशील इंसान (मानव)की फितरत ये होती है कि जो चीज या जो लोग समाज को प्रभावित करें उसकी परिकल्पना और उससे बेहतर या उसके जैसा वस्तु उसे चाहिये या उसके जैसे उसे बनना है अर्थात आप की अंतरात्मा आप का समुदाय, आप की प्रकृति कैसी है आप की क्षमता कैसी है आप ये नही देखते किसी दूसरे के प्रभाव का असर ऐसा होता है कि आप अपने आप को अपने प्रकृति के विपरीत ढालना सुरु कर देते है जैसे आज अधिकांश ऐसी भी महिलाएं है जिन्हें सिन्दूर लगाना बतलब पुराने जमाने वाली सोच लगती है और नही लगाना आधुनिकता, माथे पर कुमकुम लगाना टाइम खराब करना गजरा लगाने से एलर्जी होना ।
मेरा मुख्य बिन्दु सेनेट्री पैड है बस एक एक कड़ी को सोच में रखते रहिए ।
प्रधमंत्री जन औषधि केंद्र पर 5 रुपये का सेनेट्री पैड देश के 6500 केंद्रों पर उपलब्ध कराया जा रहा है अच्छा कोशिश लेकिन 6500 केंद्र या करोड़ो महिलाएं को पूर्ति क्या सम्भव है उत्तर नही इस योजना को अगर बाजार में सरकारी मूल्यों पर उतार दिया जाता तो बाकि गैंगेस्टर वाली कंपनियों को आपत्ति होता क्यों कि उनके पैड का टैक्स ही सरकारी पैड के मूल्यों से कही अधिक है इसलिए हमारे देश मे महिलाओं को सम्मान कितना मिलता है आप समझ सकते है रही पुरूष मानसिकता की बात तो हर मंत्रालय में हर विभाग में पुरूष बाहुल्य है फिर भी न तो किसी अस्पताल ने महिलाओं के लिए आवाज उठाई और न ही किसी महिला व्यापारी चिकित्सक ने ऐसा क्यों? क्यों कि ये ऐसा देश है जहाँ किसी को मौका मिले तो वो कफन क्या इंसान के मास को भी खा सकता है।
जरा ध्यान दें- बात गंदे कपड़े से उठी लेकिन ये नही बताया गया कि सभी साफ कपड़े खराब कैसे हो गए.
सिर्फ इतना अन्तर है पैड और साफ सही सूती कपड़े में कि आधुनिक समय मे भाग -दौड़ ,खेल कूद, लंबे समय तह जॉब करना ,सफर करना आसान नही है कपड़ो में पैड की तुलना में बाकि सिर्फ पैसों का व्यापार है दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में एक बार मैंने देखा कि जहाँ महिलाओं की डिलीवरी होती है वही एक छोटा सा काउंटर बना हुआ था जहाँ एक दर्जी सिलाई मशीन से कपडे लेकर पैड बना रहा था और महिलाओं को दिया जा रहा था डिलीवरी के बाद इस्तेमाल के लिए जब तक वो अस्पताल में है, सफाई जा अंदाजा तो पता ही होगा आपको और वही नही उत्तरप्रदेश कई कई राज्यो के बड़े बड़े अस्पताल डिलीवरी के समय महिलाओं से घर का पुराना धोती, चादर,या सूती साड़ी हमेशा माँगते है क्यों ? यदि ये गलत है तो अस्पताल इसे क्यों उपयोग करवाता है ।
बात सेनेट्री पैड के मूल्यों पर टैक्स पर है फायदे पर है और नुकसान पर है ।
कोई वैज्ञानिक क्यों नही पैदा हुआ जो इन सूती कपड़ो का आधुनिकीकरण करे?
जिस परफ्यूम का फ्लेवर का इस्तेमाल होता है सभी ब्रांडेड पैड में वो महिलाओं को समय से पहले कमसे कम 15 साल पहले अवसाद पैदा करता है ये क्यों नहीं बताया किसी महिला डॉक्टर ने?
खून को सोखने के लिए जिस फोम का उपयोग 1 रुपये के पैड में होता है वही 300 रुपये के पैड में होता है खून को जमाने के लिए जिस केमिकल का उपयोग होता है सभी पैड में वो 60% से अधिक महिलाओं को लड़कियों को गर्भाशय कैंसर,अंडाशय कैन्सर, जननांगों का कैंसर पनपते में कमाल की भूमिका निभाता है पर किसी ने नही बताया।
यदि बात की जाए कैंसर भारत में क्यों विदेशों में क्यों नही इसके लिए आप को समझना होगा,
भारत एक कुपोषण प्रधान देश है यहाँ के अमीर लोग भी 5 रुपये खर्च करने में 100 बार सोचते है बाकि गरीब और मध्यमवर्गीय तो अपने आप मे परेशान है कि खाए क्या बचाए क्या, कुपोषण ,पोषण रहित भोजन से बीमारी से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधी क्षमता भारत मे विकसित देशों से काफी कम है जबकि विकसित देशों में शराब एवं प्रीजर्ब भोजन का प्रचलन भारत से अधिक है फिर भी फल, सब्जियों,सलाद की मात्रा में भारत से कही आगे है विकसित देश.
शराब,सिगरेट, तम्बाकू के तरह ही सेनेट्री पैड ,कंडोम, गर्भ निरोधक गोलियाँ, नसबंदी एक ऐसा प्रोग्राम है जिससे सिर्फ सभी अनपढ़ सरकारों को सिर्फ कमाई करना है आप के मरने से कोई फर्क नही पड़ता आप कोई भी हों.
मैं उपयोग का विरोधी नही उपयोग करें लेकिन आप की पुरानी सभ्यता ही अंत मे सहारा देगी और देती रहेगी आप को ये ही शाश्वत है समय के हिसाब से उपयोग बेहतर है लेकिन अति करना विनाश।
Written by Dr BK.Upadhyaya
Director,Bharatmulticare(Ayurveda Health Reasearch Institute)